गीत-गीता : 9

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)

(छंद 22-28)

 

श्रीकृष्ण : ( श्लोक 11-53)

 

काया पर मोहित होना,

कब धीर मनुज का लक्षण ।

मिथ्या माटी के पीछे, 

क्यों बरसाता है जलकण।।(22)

 

कौंतेय, चक्र चलता है,

निर्माण ध्वंस का पल पल।

सुख दुख का, शीत तपन का,

रवि उगता, फिर अस्ताचल।। (23)

 

हे श्रेष्ठ पुरुष, सुख दुख में,

जो धैर्य नहीं खोता है।

निर्लिप्त रहा जो इनसे,

वह मोक्ष योग्य होता है।।(24)

 

सत्ता ही नहीं असत् की,

सत् का अभाव कब होता।

है ज्ञान तत्व का जिसको,

वह धैर्य भला कब खोता।।(25)

 

है दृश्यमान जितना भी,

है नाशवान निश्चित है।

अदृश्य सदा अविनाशी,

यह ईश नियम समुचित है।।(26)

 

अदृश्य आत्मा जीवन,

की चक्र परिधि से बाहर।

माटी से निर्मित काया,

केवल शरीर है नश्वर ।।(27)

 

इसलिये व्यर्थ में भारत,

मत शोक रुदन‌ में च्युत हो।

रणभूमि सजी सम्मुख है,

बस युद्ध हेतु प्रस्तुत हो।।(28)

क्रमशः

 

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेषगीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

 

Related posts